सुरक्षित सीमाएं किसी देश के स्वास्थ्य, शौर्य और सम्प्रभुता की निशानी होती हैं | किसी भी देश के आर्थिक, राजनीतिक, सामाजिक, सांस्कृतिक एवं सामरिक विकास की अनिवार्य शर्तों में प्रथम होती हैं सुपक्षित सीमाएं, क्योंकि जब सीमाएं सुरक्षित होती हैं तो देश का भू-भाग एवं उसके नागरिक सुरक्षित रहते हैं; देश में स्थिरता बनी रहती है। वहीँ असुरक्षित सीमाओं के कारण शासन-व्यवस्था अस्थिर हो जाती है और प्रायः उस देश के अस्तित्व पर भी संकट उत्पन्न हो जाता है। इतिहास में ऐसे अनेक उदाहरण देखने को मिलते हैं जब असुरक्षित सीमाओं के कारण कई देशों का अस्तित्व मिट गया वर्तमान काल में भी असुरक्षित सीमाओं के कारण कुछ देशों के अस्तित्व पर संकट है। तिब्बत-चीन, रूस-यूक्रेन, इजराइल-फिलिस्तीन जैसे विवादों को इसी आलोक में देखने की आवश्यकता है।

 

असुरक्षित सीमाओं के कारण अवैध गतिविधियों को भी बढ़ावा मिलता है, जिसके परिणामस्वरूप वस्तुओं (विशेषकर हथियारों और नशीले पदार्थो) एवं व्यक्तियों (आतंकवाद, देह-व्यापार, मानव अंग का विक्रय आदि) के अवैध व्यापार एवं आवागमन को बढ़ावा मिलता है। ऐसे कारणों से शासन-व्यवस्था, नैतिकता और शांति के लिए अनेक प्रकार के संकट उत्पन्न होते हैं। अतः यह अतिशयोक्ति नहीं है कि सुरक्षित सीमा से ही समर्थ और स्थिर देश का निर्माण होता है। सुरक्षित भारत में ही महान राष्ट्र भारत का विश्वव्यापी स्वरूप सन्निहित रहेगा।

सीमा सुरक्षा का विषय भारत के संदर्भ में अधिक प्रासंगिक हो जाता है, क्योंकि भारत सैकड़ों वर्षों से पश्चिम से होने वाले आक्रमण का भुक्तभोगी रहा है। उत्तर की ओर से भी हमारी सीमा को संकुचित करने का दंश हमें पिछली शताब्दी में झेलना पड़ा है। इन कालखण्डों में न केवल भारत की सीमाएं सिकुड़ गईं बल्कि जन, धन, समाज, संस्कृति, मूल्य आदि की अपार क्षति हुई है। स्वतंत्रता के पश्चात् भी सीमा सुरक्षा एक महत्वपूर्ण चुनौती के रूप में भारत के समक्ष विद्यमान है। इसका कारण भारत के पड़ोसी देश हैं जो लगातार भारत के विरुद्ध घुसपैठ, तस्करी, आतंकवाद, सीमा-विवाद जैसी समस्याएं उत्पन्न करते हैं। शत्रु में युद्ध का उन्माद तब आता है जब वह देखता है कि पड़ोसी देश की सीमाएं सुरक्षित नहीं हैं, उसे भेदना संभव है। इसलिए इन समस्याओं का कालजयी समाधान निकालना अत्यावश्यक है। इसकी एक प्रमुख कड़ी सीमा सुरक्षा है जो सीमा जागरण के जयमंत्र और जयघोष से सहज संभव है |

 

भारत की सीमा से सम्बन्धित उपर्युक्त समस्याओं के समाधान में देश के राजनीतिक नेतृत्व, प्रशासन, सेना, अर्धसैनिक बल आदि की महत्वपूर्ण भूमिका रहती है जो देश की सीमाओं को सुरक्षित रखने के लिए लगातार प्रयासरत रहते हैं | परंतु देश के नागरिकों (विशेषकर सीमावर्ती क्षेत्रों में रहने वाले लोग) की भूमिका को भी कमतर करके नहीं आंका जा सकता है। भारत-जैसे देश जिसकी सुदीर्घ सीमाएं न केवल दुर्गम हैं वल्कि दुर्बोध भी हैं उनकी अहर्निश रक्षा में सीमाजन की संभागीदारी की महत्ता और बढ़ जाती है। हम जानते हैं कि भारतीय सेना को कारगिल में घुसपैठ की सूचना स्थानीय बक्करवाल (बकरी व भेड़ चराने वाले) लोगों से मिली थी। अतः सुरक्षित सीमा के लिए सरकार के विभिन्न तंत्रों के साथ-साथ आम नागरिकों का समन्वय अत्यंत महत्वपूर्ण है।

इसी महत्व को ध्यान में रखते हुए सीमा जागरण मंच के द्वारा भारतीय जन मानस के भीतर सीमावर्ती विषयों के संदर्भ में चेतना का प्रवाह तीव्र करने एवं सीमा से जुड़े विषयों के प्रति उन्हें अधिक संवेदनशील बनाने का प्रयास किया जाता है। इसके साथ ही सीमा जागरण मंच के द्वारा सीमाओं की सुरक्षा के लिए नागरिकों की सकारात्मक भूमिका को सुनिश्चित कराने का भी प्रयास किया जाता है।

सीमा जागरण मंच का मानना है कि देशभक्ति से ओतप्रोत सजग और सक्रिय नागरिक देश व सरकार के आँख-कान होते हैं। अतः इस प्रकार के लोगों की सीमावर्ती क्षेत्रों में सजग उपस्थिति अत्यंत महत्वपूर्ण है। पर बदलती हुई परिस्थिति के कारण सीमावर्ती क्षेत्रों में रहने वाले लोग आजीविका की तलाश अथवा भौतिक सुविधाओं की चाह में सीमावर्ती क्षेत्रों से लगातार पलायन कर रहे हैं जिसके कारण ये क्षेत्र निर्जन होते जा रहे हैं। वहीँ दूसरी ओर देश से अनास्था रखने वाले अथवा देशविरोधी मानसिकता वाले लोगों को योजनाबद्ध तरीके से सीमावर्ती क्षेत्रों में स्थापित किया जा रहा है। उत्तराखंड-नेपाल सीमा की जनसांख्यिकी में बदलाव, जम्मू में रोहिंग्याओं की कॉलोनी का बनना आदि को इसके उदाहरण के रूप में देखा जा सकता है। इन विषयों को ध्यान में रखकर ही सीमा जागरण मंच सीमावर्ती क्षेत्रों में सक्रिय है | ‎

 

सीमा जागरण मंच की स्थापना वर्ष 1985 ई. में रामनवमी के दिन जैसलमेर, राजस्थान में हुई थी। स्थापना के पश्चात् इसका विस्तार देश के अन्य सीमावर्ती राज्यों में हुआ है। वर्तमान में यह संगठन देश के समस्त 24 सीमावर्ती राज्यों में विभिन्न नामों के साथ कार्यरत है। देश का संवेदनशील क्षेत्र और राष्ट्रीय राजधानी होने के कारण सन् 2016  में इसके लिए कार्य का विस्तार दिल्ली में भी किया गया, जहाँ पर यह संगठन विभिन्न आयामों के साथ कार्यरत है।
इस प्रकार और सविस्तार सीमा जागरण मंच देश के समस्त 24 सीमावर्ती राज्यों में कार्यरत है। इनमें संघशासित क्षेत्र भी शामिल हैं | इन 24 राज्यों का विवरण दो भागों में बांटकर दिया जा सकता है, जो निम्नवत हैं:

  • सीमा जागरण मंच – गुजरात, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, बिहार एवं दिल्ली।
  • सीमान्त चेतना मंच – असम, मणिपुर, मेघालय, मिज़ोरम, त्रिपुरा, नागालैंड, अरुणाचल प्रदेश, सिक्किम, पश्चिम बंगाल, उड़ीसा।
  • सीमाजन कल्याण समिति – राजस्थान, जम्मू-कश्मीर एवं लद्दाख।
  • सरहदी लोक सेवा समिति- पंजाब।
  • सागरीय सीमा मंच – महाराष्ट्र एवं गोवा।
  • भारतीय मत्स्य प्रवर्तक संघ – केरल।
  • करावली कल्याण परिषद् – कर्नाटक।
  • मत्स्यकार समक्षेम समिति – आंध्रप्रदेश।
  • समुद्र भारती – तमिलनाडु।

उपर्युक्त संगठनों के बारे में संक्षिप्त विवरण निम्नवत है:

  • सीमान्त चेतना मंच – मुख्य रूप से इसका कार्य क्षेत्र उत्तर-पूर्व के 8 राज्य हैं। अपने विभिन्न गतिविधियों के माध्यम से यह न सिर्फ सीमा सम्बन्धी चेतना का विकास करता है बल्कि राष्ट्रभक्ति को जगाने वाले कार्यक्रम भी करता है। इसके द्वारा आयोजित किये जाने वाले कार्यक्रमों में मुख्यतः रक्षाबंधन कार्यक्रम, भारत माता पूजन कार्यक्रम, देशभक्ति सन्देश आदि हैं। सीमान्त चेतना मंच के सम्बन्ध में विस्तृत जानकारी के वेबसाइट https://seemantachetanamancha.org/ पर उपलब्ध है।

 

  • सरहदी लोक सेवा समिति – 1947 ई. में भारत के दुर्भाग्यपूर्ण विभाजन के कारण पंजाब को भारत का सीमावर्ती राज्य के रूप में आना पड़ा। विदित है कि पंजाब प्रांत के 6 जिले पठानकोट, गुरदासपुर, अमृतसर, तरनतारन, फ़िरोज़पुर और फाजिल्का का 553 किलोमीटर का क्षेत्र पाकिस्तान के साथ सीमा साझा करता है। अतः इस क्षेत्र के नागरिकों को शिक्षित, आत्मनिर्भर, संगठित और जागरूक कर सीमावर्ती विषयों पर चैतन्यशील बनाने हेतु यह संगठन समर्पित है। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी वेबसाइट https://www.sarhadiloksewasamiti.org/ से ली जा सकती है।

 

  • सागरीय सीमा मंच – भारत की सागरीय सीमा के मुख्यतः दो राज्यों महाराष्ट्र और गोवा में यह संगठन कार्यरत है। सागरों की सुरक्षा और स्वच्छता को केंद्र-बिंदु में रखकर यह संगठन कार्यरत है।

 

  • भारतीय मत्स्य प्रवर्तक संघ – यह संगठन मूल रूप से केरल में कार्यरत है। इसके नाम से ही विदित है कि यह मुख्यतः मछुआरों के मध्य ही सक्रिय है। सदियों से सागरीय सीमा की सुरक्षा में मछुआरों की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह संगठन इसी दृष्टि को ध्यान में रखकर कार्य करता है। इसका वेबसाइट है – https://www.searchdonation.com/ngo/akhil-bhartiya-matsya-pravartak-sangh.php

 

  • करावली कल्याण परिषद् – कर्नाटक का दक्षिणी तटीय क्षेत्र करावली के नाम से जाना जाता है। इस क्षेत्र में न सिर्फ विशेष प्रकार की सामाजिक-सांस्कृतिक पहचान पाई जाती है बल्कि यह क्षेत्र सागरीय सीमा की दृष्टि से विशेष प्रकार से चुनौतीपूर्ण है। करावली कल्याण परिषद् ऐसी पृष्ठभूमि में अपनी विशेष उपस्थिति दर्ज करने का प्रयास करता है।

 

  • मत्स्यकार समझेम समिति – मत्स्यकार समक्षेम समिति की स्थापना वर्ष 2004 में संयुक्त राज्य आंध्र प्रदेश में मछुआरों की स्थिति को बदलने, उनके निर्देशों और सुझावों के साथ 7 सिद्धांतों के आधार पर उनके कल्याण और विकास के लिए की गई थी। इसकी शुरुआत 27 जिला मछली पकड़ने वाले गांवों में मछुआरों के साथ की गई थी। इस संगठन के द्वारा मछुआरों के मध्य शिक्षा, स्वास्थ्य, खेल-कूद, महिला सशक्तिकरण, स्वरोजगार एवं अन्य विषयों पर कार्य किया जाता है। इसके सन्दर्भ में विस्तृत विवरण के लिए वेबसाइट है –  https://www.mssap.in/

 

  • समुद्र भारती – यह मुख्यतः भारत के समुद्र तटीय राज्य तमिलनाडु में मछुआरों के भीतर शिक्षा, सुरक्षा और स्वावलंबन को ध्यान में रखकर समर्पित संगठन है। समुद्र भारती एक सामाजिक-सांस्कृतिक संगठन है जो उपर्युक्त विषयों के साथ ही तमिलनाडु के तटीय गांवों में महिलाओं को सशक्त बनाने का प्रयास करता है।

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